Sunday, October 27, 2024

धीरे-धीरे

फरेब
बहाने 
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे

आकृतियाँ
कहानियाँ
शब्द
घुल रहे हैं
धीरे-धीरे

अहम्
वहम्
फहम
से कुछ दूर 
मिल रहे हैं 
हम
धीरे-धीरे

मैं
घट रहा है
धीरे-धीरे
और
मैं
घट रहा हूँ
धीरे-धीरे


Thursday, October 24, 2024

संबल

ज्ञान
मान,
ध्यान,
भगवान
गिरना होगा 
हर वह संबंल
खड़ा है
जिस पर
"मैं"

मैं
और मैं के
हर संबंल के 
गिरने पर ही
तैरूंगा
होकर एक 
एक से

Sunday, October 6, 2024

होना

बनने से
संभव नहीं
है होना

होना तो
संभव है
होने से ही

होने की
राह नहीं
चाह नहीं

होने का
यत्न नहीं
प्रयत्न नहीं

होना तो
हो रहना
है बस

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का