फरेब
बहाने
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे
बहाने
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे
आकृतियाँ
कहानियाँ
शब्द
घुल रहे हैं
धीरे-धीरे
अहम्
वहम्
फहम
से कुछ दूर
मिल रहे हैं
हम
धीरे-धीरे
मैं
घट रहा है
धीरे-धीरे
और
मैं
घट रहा हूँ
धीरे-धीरे
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का