फरेब
बहाने
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे
बहाने
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे
आकृतियाँ
कहानियाँ
शब्द
घुल रहे हैं
धीरे-धीरे
अहम्
वहम्
फहम
से कुछ दूर
मिल रहे हैं
हम
धीरे-धीरे
मैं
घट रहा है
धीरे-धीरे
और
मैं
घट रहा हूँ
धीरे-धीरे
समय का सृष्टि से,
सृष्टि का सृजन से,
सृजन का स्त्रोत से,
स्त्रोत का सत्य से,
सवाल है।
होने और
होने के एहसास
के बीच का पुल
सवाल है।
होने का अर्थ
सवाल के हल में नहीं,
हल की खोज में है।
होने का अर्थ
हर हल में निहित
अगले सवाल और
अगली खोज में है।
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का