Sunday, October 27, 2024

धीरे-धीरे

फरेब
बहाने 
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे

आकृतियाँ
कहानियाँ
शब्द
घुल रहे हैं
धीरे-धीरे

अहम्
वहम्
फहम
से कुछ दूर 
मिल रहे हैं 
हम
धीरे-धीरे

मैं
घट रहा है
धीरे-धीरे
और
मैं
घट रहा हूँ
धीरे-धीरे


Thursday, October 24, 2024

संबल

ज्ञान
मान,
ध्यान,
भगवान
गिरना होगा 
हर वह संबंल
खड़ा है
जिस पर
"मैं"

मैं
और मैं के
हर संबंल के 
गिरने पर ही
तैरूंगा
होकर एक 
एक से

Sunday, October 6, 2024

होना

बनने से
संभव नहीं
है होना

होना तो
संभव है
होने से ही

होने की
राह नहीं
चाह नहीं

होने का
यत्न नहीं
प्रयत्न नहीं

होना तो
हो रहना
है बस

Thursday, September 26, 2024

श्राद्ध

कुश,
कुश पर पिंड
पिंड पर तिल, 
पुष्प, जल, भोग
अर्पित कर
सविधि श्राद्ध किया 
"मैं" का
मैंने

हे प्रभु
"मैं" की 
मुक्ति हो
और केवल 
"हूँ" ही हो

Wednesday, August 21, 2024

सवाल

समय का सृष्टि से,

सृष्टि का सृजन से,

सृजन का स्त्रोत से,

स्त्रोत का सत्य से,

सवाल है। 


होने और 

होने के एहसास

के बीच का पुल 

सवाल है।


होने का अर्थ

सवाल के हल में नहीं,

हल की खोज में है। 


होने का अर्थ

हर हल में  निहित

अगले सवाल और

अगली खोज में है।


Sunday, February 11, 2024

तिनका

तिनके को
थाम कर
पूरे यत्न से
प्रयत्न करता रहा
और डूबता रहा
मैं

तिनके के
छूटते ही
बिन यत्न
बिन प्रयत्न
बह रहा हूँ
मैं


दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का