Thursday, November 26, 2020

उन्मुक्त

 मैं मय होता रहा
मैं क्षय होता रहा

मैं समेटता गया जो
मुझे समेटता रहा वो

मुक्त करने लगा हूँ सब
उन्मुक्त होने लगा हूँ अब

अब मैं नहीं मैं
अब मैं ही मैं 

Sunday, November 15, 2020

निर्वाण षटकम्

(१)

मैं नहीं
मन, बुद्धि या अहम्


चित्त भी 
नहीं मैं 

मैं नहीं
इन्द्रियाँ पाँच

पंचतत्व भी
नहीं मैं 

मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं  


(२)

मैं नहीं
प्राण, पंच वायु 

सप्त धातु या
पंच कोष भी 
नहीं मैं


मैं नहीं 
मुख या 
मलद्वार

शरीर अवयव या
प्रजनेन्द्रिय भी 
नहीं मैं 

मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं  


(३)

मुझमें नहीं   
राग, द्वेष,
लोभ या मोह

अहंकार व ईर्ष्या भी
नहीं मुझमें

मुझमें नहीं   
धर्म, अर्थ 

काम व मोक्ष भी 
नहीं मुझमें

मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं  


(४)

मुझमें नहीं 
पुण्य,पाप
सुख या दुःख 

मन्त्र, तीर्थ 
वेद व यज्ञ भी 
नहीं मैं 

मैं नहीं
भोजन

भोज्य या 
भोक्ता भी
नहीं मैं


मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं  


(५)

मुझमें नहीं
मृत्यु भय, संदेह

जाति भेद भी
नहीं मुझमें 

मेरा नहीं
पिता, माता
या जन्म

बंधु, मित्र
गुरु व शिष्य भी 
नहीं मेरे

मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं  


(६)

मैं हूँ
निः विकल्प 
निः आकर
सर्वव्यापी

सर्वभूत
सर्वत्र
सर्व इन्द्रिय स्थित 
हूँ मैं 

मैं हूँ
मुक्त
मुक्ति व
बंधन से

अमेय 
हूँ मैं  


मैं हूँ 
चिर आनंद

शिव हूँ मैं शिव ही हूँ मैं


निर्वाण षटकम् गागर में सागर है जिसकी व्याख्या शब्दों से परे है।  इसका सार जितना सहज है उतना ही गूढ़ है।  अतः उपरोक्त प्रयास सूरज को रोशनी दिखाने की उद्दंडता मात्र है।  (अंतिम पंक्तियों का ठीक से अनुवाद नहीं कर पाया हूँ।)

ऐसी मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जी ने आठ वर्ष की बाल्यावस्था अपना परिचय में इन छः श्लोकों द्वारा दिया था।  यह रचना इतनी स्वप्रवाहित एवं संगीतमय है, मानो एक बालक के कंठ से स्वयं परमात्मा ने इन्हें अभिव्यक्त किया हो।   प्रस्तुत है :

मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् 
न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: 
न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ 
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: 
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ 
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

Sunday, November 1, 2020

सफर

ये सफर

सिफ़र से सिफ़र


तय करें कि

तय कैसे करें


या खुदी को लाद कर

या खुशी के पंख पर 

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का