अनेकों हैं सृष्टि
अनंत है हर सृष्टि
समेटे है खुद को
क्यों तू दायरों में
बढ़ा अपनी हस्ती
समेटे हर सृष्टि
बन कर तू इंसाँ
बन जा विधाता
अनंत है हर सृष्टि
समेटे है खुद को
क्यों तू दायरों में
बढ़ा अपनी हस्ती
समेटे हर सृष्टि
बन कर तू इंसाँ
बन जा विधाता