Monday, March 7, 2016

दायरे

अनेकों हैं सृष्टि
अनंत है हर सृष्टि
समेटे है खुद को
क्यों तू दायरों में

बढ़ा अपनी हस्ती
समेटे हर सृष्टि
बन कर तू इंसाँ
बन जा विधाता

Saturday, March 5, 2016

कैद

आदी हो चला है
आईना मेरी सूरत का

कमबख्त टूटता नहीं
और सूरत बदलती नहीं

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का