बोस भगत के गर्म सिपाही
या थे चरखे के अनुयायी
खा फाँसी गोली दोनों ने
भारत को आज़ादी दिलवाई
उंगली उन पर उठा रहे
देखो कलियुग के मौकाई
जो चाट रहे थे गोरे तलवे
जो लड़वाएं भाई से भाई
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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