Tuesday, May 13, 2014

जुगलबंदी अभिषेक दुबे के साथ # २

अभिषेक :
काशी तो भइया उनकी, माँ गंगा जिनके साथ,
चाहे हरहर बोल लो, या नमो नमो विश्वनाथ

स्वयं  :
काश काशी जाते करते श्री नमो स्नान
पाप औ अभिशाप धोते थोथा तज अभिमान
साफ़ नीयत हो तो करती माँ सदा सम्मान
धर्म पर दुष्कर्म करते नासमझ बेईमान
दिनेश अग्रवाल (अभिषेक के मित्र):
नमो को रोने वालो, देखो कजरी का धर्म
थर्ड फ्रंट को सपोर्ट दे ने में ना आ रही शर्म

स्वयं  :
तय विजय तो अशांति क्यों
क्रान्ति पर यह भ्रान्ति क्यों


चाहे जितना हो प्रबल
झूठ गिरता सिर के बल

अभिषेक :
पाप धोते हैं पापी, अधर्म जिनके काज
क्यों छलेगा वो, जो प्रिय सकल समाज!!!
स्वयं :
जो सहज निश्छल बुलाती माँ उन्हेँ ही हर्ष से
बाकी कतराते हैं डरते गंगा माँ के स्पर्श से


कर चुके दूषित तुझे वो पाप बल औ छल
चली झाड़ू बही गंगा साफ़ अब कल कल


अभिषेक :
माँ के निश्छल स्पर्श को, जो देते राजनिती का नाम,
स्विकार पराजय अपनी, करते भीषण साम दाम
स्वयं :
हर हर औ गंगे को करें न दूषित दुष्काज से
है यही विनती नमो औ नमो भक्त समाज से


ना खिले मल में कमल है महज यह आस
हो अमन औ मन मिले हो चहूँमुखी विकास

अभिषेक :
नमो समाज एक नाम, जन जन के विश्वास का,
अाश का, आगाज का, विकास के परिभाष का !!
स्वयं :
दोषी दंडित करते खंडित नमो नाम विश्वास
काला धन सींचे जिसे उस वृक्ष से क्या आस

अभिषेक :
वह तर्क व्यर्थ होता, जहाँ प्रबल न हो प्रमाण,
वह गर्व व्यर्थ होता, जो दे न सके सम्मान!!
स्वयं :
कैसे जागे नीँद का जो रच रहा हो स्वांग
गाड़ सिर को रेत में औ पी नमो की भाँग


अस्सी प्रतिशत धन का जिनके ओर है न छोर
सौ में चालीस दागी दोषी खूनी है या चोर

अभिषेक :
अब बोलो उसको अवसाद या, बोलो विकट अभिशाप
प्रधान पद विराज गया वो, बिमार करें विलाप
स्वयं :
प्रधान के प्रचार में उद्यम करें निवेश
कब हुए आज़ाद हम अपना कब था देश
आज डीजल दाम उछला कल बढेगी गैस
फ़िक्र क्यों प्रलाप कैसा अब हमारे ऐश

अभिषेक :
हे ज्ञानी ह्रदय, महापुरुष, मेरा भी मत मान लो,
तजो निराशा, नकारी भाषा, आाशा स्वर भी जान लो,
मैं भी पीड़ित, आप भी पीड़ित काँग्रेस नाम विकार से,
अाअो समृद्धि भी अब देख ले नमो नाम प्रतिकार से !!
स्वयं :
एक प्रधान थे मौन हमेशा घोटालों और स्कैम पर
अब प्रधान भी शांत रहेंगे गैस मुकेश के नाम पर


भक्तों को साष्टांग नमन हैँ चुप जटिल सवाल
पर शुक्र नहीं है बिकनेवाला अपना केजरीवाल


लगे आग डीज़ल औ गैस अच्छे दिन का नारा है
पहले लूट रहे थे विरले अब गिरोह ह्मारा है


नींव निर्बल ढाँचा जर्जर है राजनीति नाकारी
बारी बारी खाया धोखा आशा पर ना हारी
हो सत्य तुम्हारा कथन मित्र औ मिथ्या बात हमारी
चमत्कार को नमस्कार हो अच्छे दिन की बारी


स्वयं :
फैलाया खूब रायता औ खूब मचायी गॅध
कलम को अब विश्राम दें कर ये जुगल बन्द


प्रथम संस्करण 

Sunday, May 11, 2014

माँ

#१
साथ नहीं पर पास यहीं
ममता का एहसास वही
है तेरी हर याद काफी
खोजूँ क्यों भगवान कहीं

#२
तब ऊँगली थी राह बताती
पग पग अब भी साया है
साँसे धड़कन सीख दर्शन
सब तुझसे ही  पाया  है

Saturday, May 10, 2014

मंथन

पत्थर पड़े तो ग़म क्यों मीलों पर वो लगेंगे
स्याही पड़ी तो हम वो इतिहास जो रचेंगे

सागर से कह दो भेजे जितनी प्रबल हों लहरें
मंथन नहीं रुकेगा अक्खड़ अड़िग जो ठहरे

Wednesday, May 7, 2014

आगाज़

पीर ना परिहास से
ना रुके उपहास से
एक अदना आदमी 
चल पड़ा विश्वास से

जज़्बा है जज़्बात है
सत्य पथ शुरुआत है
नवचेतना की नींव पर
नवयुगी आगाज़ है 

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का