धूप धूल
पग शूल छिली
सतत अथक
अनवरत् चली
अब लो ठहर
तुम एक पहर
पोंछ घाम
कुछ लो विराम
खुद को निहार
लो खुदी निखार
कुछ हुनर सँवार
करो खुद से प्यार
एक नई डगर
अब नया सफर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
(प्रतिमा की सेवा निवृत्ति के अवसर पर)
धूप धूल
पग शूल छिली
सतत अथक
अनवरत् चली
अब लो ठहर
तुम एक पहर
पोंछ घाम
कुछ लो विराम
खुद को निहार
लो खुदी निखार
कुछ हुनर सँवार
करो खुद से प्यार
एक नई डगर
अब नया सफर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का