Saturday, April 4, 2015

मेरे शहर का विकास

वन था यहाँ वृक्ष थे
थे अदद पंजों के निशान
अब धुआँ धूप है
हैं अहम से ऊँचे मकान


सीमेंट गारा धूल है
पवन वातानुकूल है
ओढ़े कोहरा आकाश
मेरे शहर का विकास

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का